Hathi Ki Kahani - हाथी मेरे साथी
यह (Hathi Ki Kahani) कहानी है एक छोटे से गाँव में जहाँ पर एक बच्चा नामक राजू रहता था। राजू के पास कोई खेलने की चीजें नहीं थीं, लेकिन उसकी आख़िरी ख्वाहिश थी कि उसके पास एक हाथी हो, जिसके साथ वह खेल सके। राजू के माता-पिता उसकी यह इच्छा जानते थे, लेकिन उनके पास उतने पैसे नहीं थे कि वे उसे हाथी खरीद सकें।
हाथी मेरे साथी - Hathi Mere Sathi
राजू की इच्छा
एक दिन, गाँव में एक मेला आया। राजू ने देखा कि मेले में एक छोटा सा हाथी (Hathi Mere Sathi) खड़ा है, जिसका रंग गोलू-मोलू होता था। राजू की आँखों में खुशी छा गई। वह अपने माता-पिता के पास गया और उनसे मिलकर बोला, "माँ-पापा, क्या आप मुझे उस हाथी के लिए पैसे दे सकते हो?"
Hathi Ki Kahani माता-पिता ने राजू की विचारधारा को समझा दिया और वे मेले गए। वह अपने बच्चे के लिए हाथी खरीदने की कोशिश करने लगे। उन्होंने कई बार दाम बढ़ाने की कोशिश की, लेकिन हाथी के मालिक ने माना नहीं।
राजू के माता-पिता थक गए और उन्होंने उस हाथी की खरीददारी से हाथ खींच लिया। राजू के आँखों में आंसू थे, लेकिन उसने समझा कि पैसे की कमी उसके माता-पिता की वजह से हुई है और वह उन्हें निराश नहीं कर सकता।
Hathi Ki Kahani राजू ने अपने माता-पिता से कहा, "माँ-पापा, कोई बात नहीं, मैं बिना हाथी के भी खुश हूँ।" उसके यह शब्द उसके माता-पिता के दिल में छू गए। उन्होंने समझ लिया कि उनके बेटे की सच्ची ख़ुशी उनके साथी हाथी में नहीं, बल्कि उनके साथ है।
इस कहानी से हमें यह सिख मिलती है कि हमारी ख़ुशी हमारे पास के छोटी-छोटी चीज़ों में होती है, और हमें हमेशा आपने पास की महत्वपूर्णीयता को समझनी चाहिए।
Hathi Ki Kahani कृपया ध्यान दें कि यह कहानी कल्पना पर आधारित है और इसमें किसी वास्तविक घटना से संबंधित नहीं है।
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